मेरी मंजिल

Swati Madhwal

मेरी मंजिल मेरे पास आये या ना आये

लेकिन एक गरीब माँ की औलाद कभी दर दर की ठोकर न खाए

मेरे पास दो वक़्त का खाना है और रहना को छत

लेकिन एक गरीब माँ  की उम्मीद कभी आसू  में ना बह जाए !!

मुझे नहीं चाहिए औदिब्म्व

लेकिन एक गरीब माँ की चार धाम यात्रा

उनकी ओलाद जरुर पूरी कराए

मुझे नही चाहिए हीरो रिच जीवन साथी

लेकिन एक गरीब माँ की बेटी को एक अच्छा बर चाहिए

मुझे बहुत खूबसूरती  नही चाहिए

लेकिन जिनके हाथ पैर नही उनको  थोड़ी ख़ुशी मिल जाए

मुझे बहुत दोलत नहीं चाहिए

लेकिन जिनके पास दो  वक्त की  रोटी नही

उन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाये……

रचना – स्वाति मधवाल पंडित